छत्रपति शाहू महाराज
(26 जून, 1874 - 6 मई, 1922)
शाहू महाराज ( जिन्हें राजर्षि शाहू महाराज, छत्रपति शाहू महाराज या शाहू महाराज भी कहा जाता है) भोसले राजवंश के राजा (शासनकाल 1894 - 1922) और कोल्हापुर की भारतीय रियासत के महाराजा (1900-1922) थे । उन्हें एक वास्तविक लोकतांत्रिक और समाज सुधारक माना जाता है । वह महाराष्ट्र के इतिहास में एक अमूल्य मणि थे । समाज सुधारक महात्मा ज्योतिराव फुले जी के योगदान से काफी प्रभावित, शाहू महाराज एक आदर्श नेता और सक्षम शासक थे, जो अपने शासन के दौरान कई प्रगतिशील गतिविधियों से जुड़े थे । 1894 में राजा होने से 1922 में मृत्यु तक, उन्होंने अपने राज्य में तथाकथित निचली जाति के उत्थान के लिए अथक परिश्रम किये । जाति और पंथ निरपेक्ष सभी को प्राथमिक शिक्षा उनकी सबसे महत्वपूर्ण प्राथमिकताओं में से एक थी ।
छत्रपति शाहू महाराज का जन्म 26 जून 1874 को कागल के घाटगे परिवार के जयसिंहराव और राधाबाई के घर में हुआ । उनके पूर्वाश्रम का नाम यशवंतराव था । शिवाजी चतुर्थ की असामयिक मृत्यु के बाद, वह 17 मार्च 1884 को कोल्हापुर निवासी हुए । उन्होंने राजकोट और धारवाड़ में शिक्षा प्राप्त की, जहा उन्हें सर फ़्रेज़र और रघुनाथराव सबनीस जैसे अध्यापक मिले । एक छात्र की रूप में उन्होंने इंग्लिश, संस्कृत, इतिहास, राजनीती, विज्ञान आदि विषयों का अध्ययन किया । 1891 में उनकी शादी बड़ोदा के गुंजीराव खानविलकर की बेटी लक्ष्मीबाई से हुई । उनके दो बेटे राजाराम और शिवजी और दो बेटीया राधाबाई और औराई थी ।
2 अप्रैल 1894 छत्रपति शाहू महाराज को राजगद्दी मिली । छत्रपति शाहू महाराज कोल्हापुर के एक प्रगतिशील राजा और महान समाज सुधारक थे । वे प्राथमिक शिक्षा, जातिगत भेदभाव की रोकथाम, अस्पृश्यता की रोकथाम आदि सुधारों के पुरोधा थे । उन्होंने प्रशासन प्रणाली में बहुजन समाज के योग्य और गुणी लोगो को नियुक्त करना शुरू किया । 1897-98 में पड़ा हुआ अकाल और प्लेग जैसी महामारी के साथ युवा छत्रपति शाहू महाराज ने साहस के साथ मुकाबला किया ।
शाहू महाराज का यह मानना था की उच्च जाति के सामाजिक और धार्मिक विशेष अधिकार को समाप्त करना आवश्यक है । वे महात्मा ज्योतिबा फुले की सत्यशोधक धारा के प्रति आकर्षित हुए थे । शाहू महाराज के प्रोत्साहन से सत्य शोधक समाज की विचारधारा का पुनर्जीवन मिला । कोल्हापुर में श्री शिवाजी वैदिक स्कूल की स्थापना की गई और एक स्वतंत्र युवा शिक्षक श्री सदाशिवराव पाटिल को क्षात्र जगद्गुरु के रूप में नियुक्त किया गया ।
शाहू महाराज ने आर्य समाज और थियोसोफिकल सोसाइटी को भी प्रश्रय दिया । आर्य समाज के गुरुकुल की भी स्थापना की और राजाराम कॉलेज आर्य समाज को चलाने के लिये दिया ।
जब तक बहुजन समाज शिक्षित होकर बुद्धिवान नहीं बनता तब तक उनकी गरीबी, अंधविश्वास, अज्ञान दूर नहीं हो सकता, ये ध्यान में रखते हुए उन्होने प्राथमिक शिक्षा पर जोर दिया । सन 1917 में उन्होंने अपने राज में अनिवार्य मुफ्त प्राथमिक शिक्षा का कानून लागु कर दिया और हर गाव में प्राथमिक विद्यालय शुरू किया । जाती और जनजातियों के लिए छात्रवास की स्थापना की । इसके अलावा नासिक, नगर और पुणे में उनकी प्रेरणा और मदद से छात्रावास शुरू किये गए ।
उन्होंने वंचित समाज के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण 26 जुलाई 1902 को लागु किया, जो इतिहास में सबसे पुराना सकारात्मक कार्यक्रम रहा । शाहू महाराज आरक्षण निति अपनाने वाले भारत के पहले शासक बने ।
उन्होंने रोजगार प्रदान करने के लिए 1906 में शाहू छत्रपति बुनाई और स्पिनिंग मिल शुरू की । राजाराम कॉलेज शाहू महाराज द्वारा बनाया गया था और बाद में इसका नाम उनके नाम पर रखा गया । उनका जोर शिक्षा पर था । उन्होंने शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई शैक्षणिक कार्यक्रम शुरू किए ।
उन्होंने विभिन्न जातियों और धर्मों जैसे पंचल, देवदान्य, नाभिक, शिंपी, ढोर - चमार आदि समुदायों के साथ-साथ, मुसलमानों, जैनों और ईसाइयों के लिए अलग-अलग छात्रावास स्थापित किए । उन्होंने सभी समाज के छात्र एकत्रित पढे, इस के लिए मिस क्लार्क बोर्डिंग स्कूल की स्थापना की । उन्होंने पिछड़ी जातियों के गरीब लेकिन मेधावी छात्रों के लिए कई छात्रवृत्तियां प्रदान की ।
उन्होंने वैदिक स्कूलों की स्थापना की जहां सभी जाति और वर्गों के छात्रों को शास्त्र और संस्कृत सिखाया जाता था । उन्होंने बेहतर प्रशासक बनाने के लिए गांव के प्रमुखों ('पाटिल') के लिए विशेष विद्यालय भी शुरू किए । सार्वजनिक स्थान पर अस्पृश्यता की प्रथा को मना किया । इसके लिए 1918-19 में अध्यादेश भी जारी किये। बलुतेदारों को उनकी बलुत प्रणाली से मुक्त कर दिया और समाज के सभी उद्योग उनके लिए खोल दिए । शाहू महाराज अस्पृश्यता के साथ अंत तक लड़ते रहे ।
उन्होंने घुमन्तु जातियां जैसे की फासेपारधी, कोरवी इनके जीवन को स्थिर कर दिया और उन्हें अपने अंगरक्षक के रूप में नियुक्त कर दिया ।
समाज के हर सदस्य के बराबर तथाकथित अछूतों को कुएं और तालाबों के साथ-साथ स्कूलों और अस्पतालों जैसे प्रतिष्ठानों के समान उपयोग के आदेश दिए । उन्होंने कई अंतर जातिय विवाह करवाए और ऐसे विवाह को को वैध बनाया । तथाकथित दलितों के उत्थान के लिए बहुत सारे प्रयास किए ।
विवाह विच्छेद और विधवा विवाहबको वैध बनाया । महिलाओ के शारीरिक और मानसिक शोषण से मुक्ति के लिए कानून पारित किया । पिछड़े वर्ग की लड़किया और महिलाओं के लिए निःशुल्का शिक्षा की व्यवस्था की । उन्होंने देवदासी प्रथा पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून की शुरुआत की । इस प्रथा में लड़कियों को भगवान को समर्पित किया जाता था और इसका परिणाम ऐसे लड़कियों का शोषण होने में होता था । उन्होंने 1917 में बाल विवाह को रोकने के प्रयास किए ।
डॉ बाबासाहेब आम्बेडकर जी के साथ संपर्क :
डॉ बाबासाहेब आम्बेडकर जी का छत्रपति शाहू महाराज से परिचय कलाकार पवार और दलवी ने कराया । युवा भीमराव की महान बुद्धि और अस्पृश्यता के बारे में उनके क्रांतिकारी विचारों से शाहू महाराज बहुत प्रभावित हुए । दोनों ने 1917-1921 के दौरान कई बार मुलाकात की और जातिभेदों को नष्ट करने के सभी तरीकों को अपनाया ।
महाराज ने अपने सामाजिक विचारों को छिपाया नहीं । वे उन्हें व्यक्त करने से डरते नहीं थे । अपने विचारों को आचरण में लाने से वे कभी डगमगाए नहीं । वंचित समाज के न्यायिक अधिकारों के लिए और प्रगति के लिए उनके जाती संगठन का महत्त्व वे समझते थे । लेकिन साथ साथ जाती निर्मूलन की आवश्यकता को भी समझाते थे ।
खामगाव के अखिल भारतीय शिक्षण परिषद के अध्यक्ष पद से बोलते हुए उन्होंने कहा था "जब तक हमारे समाज में जातिगत मतभेद और द्वेष जीवित हैं, तब तक हम एक दूसरे के साथ संघर्ष में रहेंगे और अपने हित के वृद्धि को अपाय करेंगे । जितनी जल्दी हम अपने जातिबन्धनों को तोड़ देंगे उतने ही जल्दी हम स्वराज्य पाने की हमारी योग्यता को बढ़ाते जायेंगे । जिस दिन हमारे मन में यह तत्त्व दृढ़ होगा वही राष्ट्र के लिए सुदिन होगा ।”
1920 में, उदाजी मराठा वसतिगृह की भूमि पूजा करते हुए उन्होंने कहा, “सभी जातियों के नेताओं से मेरा निवेदन है की वे दूरदृष्टि रखें, न की केवल अपने पैरों तक ही देखें । जातिभेदों को तोड़ना इष्ट है, जातिवाद एक पाप है । देश की उन्नति में यह एक बाधा है । हजारों वर्षों से चलती आ रही गुलामी का जातिभेद यह एक मात्र कारण है । कुछ लोग कहते है, जातिभेद रहे तो चल जायेगा लेकिन जातीद्वेष न हो । ऐसे लोगों पर मुझे दया आती है । क्यों कि जातिभेद का कार्य जातिद्वेष है । कार्य का उच्चाटन करने हेतु कारण को ही नष्ट करना चाहिए ।”.
जाती की भावना कम करने के लिए उन्होंने कहा, " जातिभेद को तोड़ने के प्रयास केवल दलित वर्गों से शुरू हुए तो उसके परिणाम अनर्थ कारक होंगे । लेकिन वही काम उच्च कहलाने वाले लोगों से प्रयत्नपूर्वक हुए तो स्वार्थत्याग का उदहारण अन्य जातियों के लिए भी बोधप्रद होगा ।"
1920 में तथाकथित अस्पृश्यों के सुधार के लिए राजर्षी ने एक सम्मेलन का आयोजन किया । उन्होंने डॉ आम्बेडकर जी को उस संमेलन का अध्यक्ष बनाया क्यों कि उनका मानना था कि डॉ आम्बेडकर जी ऐसे नेता थे, जो समाज के सभी हिस्सों में सुधार के लिए काम कर सकते थे । डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर जी का सम्बन्ध 1922 में छत्रपति की मृत्यु तक जारी रहा ।
तथाकथित अस्पृश्यों के हाथ से अन्न ग्रहण करने के प्रकट कार्यक्रम में महाराज ने अपने राजपरिवार के सदस्यों को भी शामिल कर लिया । महाराज शिकार करने हेतु शिरोल गए थे । वहा के महार बंधू के घर में ही उन्होने अपने चायपान की व्यवस्था करने के लिए कहा । वहां अकेल ही नहीं गए बल्कि महिलाओं के लिए हल्दी-कुमकुम समारोह का आयोजन कर, अपने घर की महिलाएं - रानी साहेबा, अक्कासाहेबा तथा इन्दुमतिदेवी जी को भी सम्मिलित कर लिया । इंदुमती जी से इस समारोह में छोटासा भाषण भी करवा लिया ।
राजर्षि शाहू महाराज के प्रोत्साहन से कोल्हापुर के मुख्य रास्तेपर ' सत्यसुधारक होटल' शुरू किया गया । शहर का भ्रमण करते हुए, महाराज की घोड़ागाड़ी इस होटल के सामने रुकने लगी । घोड़ागाड़ी में बैठकर महाराज अपनी बुलंद आवाज में चाय की आर्डर देते थे और गंगाराम ने लाये चाय ट्रे में से महाराज स्वयं ही नहीं बल्कि घोड़ागाड़ी में खचाखच भरे सभी जाती के लोगों को भी आग्रहपूर्वक पिलाते थे ।
'बलुतेदार' की प्रथा को नष्ट करने के प्रयास में उन्होंने कई परियोजनाओं की शुरुआत की । इसमें तथाकथित बलुतेदार समाज के लोगों को अन्य व्यवसायों का शिक्षण लेने और उसमे आत्मनिर्भर बनकर सक्षम होने की शिक्षा दी जाती थी । शाहु छत्रपति स्पिनिंग और बुनाई मिल, समर्पित बाजार स्थान और किसानों के लिए सहकारी समितियों की स्थापना छत्रपति ने की । कृषि बाजार में से बिचौलियों को कम करने का प्रयास भी उन्होंने किया । उन्होंने कृषि का आधुनिकीकरण करने के लिए उपकरण खरीदने किसानों को क्रेडिट उपलब्ध कराया । फसल उपज और संबंधित प्रौद्योगिकियों को बढ़ाने के लिए किसानों के लिए राजा एडवर्ड कृषि संस्थान की स्थापना की । उन्होंने 18 फरवरी, 1907 को राधानगरी बांध की शुरुआत की और वह परियोजना 1935 में पूरी हो गई । यह बांध छत्रपति शाहू महाराज का प्रजा के प्रति कल्याण की दृष्टी को प्रमाणित करता है । बांध नें कोल्हापुर को पानी के विषय में आत्मनिर्भर बना दिया ।
महाराज कला और संस्कृति के एक महान संरक्षक थे और संगीत और ललित कला के कलाकारों को प्रोत्साहित करते थे । उस्ताद अल्लादिया खां, हैदरबक्श, सुरश्री केसरबाई केरकर, बालगंधर्व, केशवराव भोसले आदि गायक जिन्होंने अखिल भारतीय ख्याति प्राप्त की थी, कोल्हापुर संस्थान में आश्रय के लिए थे ।
संगीत और नाटक के प्रश्रय के लिए उन्होंने कोल्हापुर में शानदार पैलेस थिएटर बनवाया । उन्होंने लेखकों, चित्रकार और शोधकर्ताओं को उनके प्रयासों में समर्थन दिया । राजर्षि शाहू स्वयं एक पहलवान के रूप में प्रसिद्ध थे । उन्होंने जिमनासियम और कुश्ती का अखाडा बनाया और युवाओं के बीच स्वास्थ्य चेतना के महत्व पर प्रकाश डाला ।
सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षिक, कृषि और सांस्कृतिक क्षेत्रों में उनके मौलिक योगदान के कारण कानपुर के कुर्मी योद्धा समुदाय ने उन्हें राजर्षि का खिताब दिया । इस राजा ने अंत तक बहुजन समाज को जगाने का कार्य किया । 6 मई 1922 को मुंबई में 48 वर्ष के आयु में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया ।
( इस आलेख में जातियों का उल्लेख अपरिहार्य होने के कारण एवं राजर्षी के कार्य का महत्त्व ध्यान में आये इस लिये किया है । )
सन्दर्भ : Shahu Chatrapati: A Royal Revolutionary by Dhananjay Keer
https://www.livemint.com/Leisure/PLkr7jdpCeZepho8RMVJbN/Rajarshi-Shahu-Chhatrapati-of-Kolhapur-a-reformer-ahead-of.html
https://www.culturalindia.net/reformers/shahu-chhatrapati.html