संत रविदास का हिंदु एकता में योगदान

ssf-map    10-Feb-2021
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 हमारे देश में इतिहास लेखन की प्रवृत्ति बहुत कम देखने को मिलती है । जो इतिहास हम पढ़ते हैं उसमें बड़ा योगदान विदेशियों का है । फिर चाहे वह ह्वेनसांग हो या फ़ाय्यान, इब्नबबूता हो या अल बरुनी तुजुक ए बाबरी हो या अकबरनामा । हमारे यहां इतिहास प्रमाणिक स्वरूप में नहीं लिखा गया या तो वह कपोल कल्पना से युक्त पुराणों में है, या पृथ्वीराज रासो जैसे कवि ग्रंथों के रूप में है । फिर इतिहासकारों ने भी इतिहास राजाओं और योद्धाओं का लिखा ,जय पराजय को वर्णित किया या सामाजिक स्थितियों को ,उनकी नजर से एक सबसे महत्वपूर्ण पक्ष छूट गया कि इस देश का इतिहास संतों ने बनाया है ।
 
 
 लेकिन इतिहासकारों की रुचि कभी संतों में नहीं रही । जो समाज परिवर्तन की क्रांति संतों ने उठाई उसी ने राजनीतिक इतिहास का निर्माण किया । फिर चाहे वह क्रांति चाणक्य के नेतृत्व में चंद्रगुप्त ने की हो या समर्थ गुरु रामदास के मार्गदर्शन में शिवाजी ने अथवा 10 गुरुओं के आलोक में सिक्ख शक्ति के इतिहास का निर्माण किया है ।इस देश में गांधी ने संतत्व धारण किया तभी वह इस देश में स्वतंत्रता का आंदोलन खड़ा कर पाए। यदि महात्मा का तमगा हट जाए तो गांधी कभी देश को आंदोलित ना कर पाते । उन्होंने संतत्व का राजनीतिक उपयोग किया । लेकिन मध्ययुगीन भक्त संतों का महत्व साम्राज्य का निर्माण कर देने वाले संतों से अधिक है । मध्ययुग के जातिवाद और छुआछूत के जाल में जकड़े हिंदू समाज में से तुलसीदास को छोड़कर ज्यादातर संत तथाकथित निम्न जातियों से आते हैं ।
 
 
जैसे कबीर जुलाहा, सैना नाई, सधना कसाई, धन्ना जाट ,संत रविदास चर्मकार और इन संत कवियों का केंद्र भी काशी और उसके आसपास ही रहा है ।हम जानते हैं कि हमारा देश चारों ओर से सुरक्षित है इसके तीन तरफ समुद्र और एक तरफ हिमालय है । जिसे पार करना आसान नहीं था । ऐसे में हमारी पूरी सभ्यता संस्कृति धर्म और दर्शन यहां तक कि राजनीति भी इस बात से अनभिज्ञ थी कि कभी इस देश में ऐसा धर्म भी आएगा जिसे ना मानने पर मौत दी जा सकती है । जिसमें धर्म के साथ जीवन का निश्चित तरीका ,जन्म ,शादी मौत ,ही नहीं बल्कि खाना-पीना सोना पहनना सब कुछ निर्धारित है । जो धर्म , राजनीति ,दंड नीति ,कानून, न्याय, शत्रु सब का निर्धारण और अतिक्रमण करता है । सेमेटिक धर्म की संकल्पना से हमारा कोई परिचय नहीं था ।
 
 
इसी कारण हिंदू समाज में सारे आत्मघाती दोष आ गए जिसके वर्ण और जाति विभाजन भी एक है और यह विभाजन का विवरण देते हुए डॉ आंबेडकर लिखते हैं कि हिंदू आपस में कुछ भी शेयर नहीं करते यहां तक कि मरने के बाद भी उनके श्मशान अलग-अलग होते हैं ऐसे 2500 जातियों उप जातियों में विभाजित हिंदू समाज को एक रखने का काम मध्ययुगीन संतों ने किया है ।
संत सुधारकों को एक तरफ परंपरा वादी ,रूढ़िवादी ,जाती श्रेष्ठता और ज्ञान पर एकाधिकार का दावा करने वाले ब्राह्मणों से संघर्ष करना था । तो दूसरी ओर ऐसा राजनीतिक वातावरण जिसमें देश विधर्मियों के हाथों पद्दलित और पराजित हो चुका था । हिंदू समाज का सैनिक प्रतिरोध पस्त हो चुका था । उत्तर भारत के सभी बड़े मंदिर तोड़ दिए गए थे । स्वाभाविक रूप से मूर्ति पूजा से लोगों का विश्वास डिगने लगा था ।
 
 
हिंदुओं को भयभीत व प्रताड़ित करने एवं धर्म परिवर्तन करने को शासकीय संरक्षण प्राप्त था । हिंदू बने रहने की कीमत जजिया टैक्स के रूप में देना पड़ती थी । हिंदुओं को आय का 50 परसेंट तक टैक्स देना पड़ता था ।इसके विपरीत मुसलमान हो जाने पर टैक्स में माफी ,सजा में माफी, समानता की गारंटी और सुरक्षा के साथ सम्मान सब कुछ प्राप्त था । समाज की निचली जातियों के लिए तो इस्लाम गृहण करना वरदान हो सकता था । लेकिन उसके बावजूद मध्ययुगीन संतों द्वारा अपने तत्वज्ञान और दर्शन के आधार पर समाज को हिंदुत्व से जोड़े रखा । उन संतों में अग्रज नाम संत रविदास का था ।संत रविदास पर चर्चा करने के पूर्व आवश्यक है उनके दार्शनिक आधार को समझा जाये क्योंकि वही मूल है।
 
 
मध्ययुगीन सभी संत कवियों को क्रांतिकारी संत रामानंद ने गुरु दीक्षा दी । यह दीक्षा धार्मिक मान्यता के लिए आवश्यक थी क्योंकि उस समय बगैर गुरु के कोई मान प्रतिष्ठा नहीं मिल सकती थी । उन्हें नुगरा कहा जाता था। वास्तव में कबीर और रैदास सहित तमाम संतों का जो प्रवाह है उसकी गंगोत्री स्वामी रामानंद है । वही भक्ति आंदोलन के मूल में हैं बाकी शाखाएं है । वे क्रांतिकारी संत थे क्योंकि उन्होंने परंपरा तोड़कर नीची जाति के लोगों को दीक्षा दी । उन्होंने ही हिंदू तत्वज्ञान को संस्कृत से निकालकर जन भाषा में प्रस्तुत किया ,जिसका विस्तार भक्त कवियों ने किया । उन्होंने सबसे पहले हिंदी में प्रार्थना के लिए आरती लिखी क्योंकि आमजन को धार्मिक क्रिया के लिए कुछ भी उपलब्ध नहीं था । स्वामी रामानंद ने मुसलमानों की शुद्धि करके उन्हें हिंदू धर्म में वापसी का रास्ता खोजा।
 
 
 तत्व दर्शन की बात करें तो कबीर आचार्य शंकर के अद्वेतवादी और रविदास रामानुज के विशिष्टद्वेत के अधिक निकट हैं । आचार्य शंकर का मत है की एकमात्र ब्रह्म ही सत्य है । शेष सब कुछ मिथ्या है जगत भी मिथ्या है । सुख ,दुख, प्रेम,भक्ति सारे जगत व्यवहार माया है । जब ब्रह्म ही एकमात्र सत्य है तो आत्मा भी ब्रह्म ही है जो अज्ञान वश या माया के कारण जीव रूप में भाषित होता है । में और मेरा का सम्पूर्ण व्यवहार अध्यास के कारण है ।शंकर एक मात्र ब्रह्म की सत्ता स्वीकार करते हैं । जबकि रामानुज ने ब्रह्म के साथ जड़ और चेतन दो और तत्वों को स्वीकार किया है ।उन्हें ब्रह्म निर्विशेष नहीं निर्गुण और के साथ सगुण भी माना । रामानुज ने एक ही ब्रह्म के पांच प्रकार बताएं है जिसे अंतर्यामी, पर, व्यूह, विभव ,अंतर्यामी और अर्यावतार कहते है।
पर - पर ब्रह्म,काल और परिणाम के परे है ।
व्यूह- जो संसार की लीला रचता है । विभव - ब्रह्म जो विभिन्न रूपों में अवतार लेता है ।
अंतर्यामी -अंतर्यामी रूप में वह सभी प्राणियों के अंदर निवास करता है ।
अर्यावतार - स्थान स्थान पर मंदिर आदि में जिसकी अर्चना की जा सके । इस प्रकार रामानुज ने अद्वेत ब्रह्म के साथ भक्ति की संभावना के द्वार भी खोल दिए।
संत रविदास अपने दर्शन के में अगुण और सगुण, वेदांत और भक्ति का समन्वय कर देते हैं वह कहते हैं ।
 
प्रभु जी तुम चंदन हम पानी। जाकी अंग-अंग बास समानी॥
प्रभु जी तुम घन बन हम मोरा। जैसे चितवत चंद चकोरा॥
प्रभु जी तुम दीपक हम बाती। जाकी जोति बरै दिन राती॥
प्रभु जी तुम मोती हम धागा। जैसे सोनहिं मिलत सोहागा।
प्रभु जी तुम स्वामी हम दासा। ऐसी भक्ति करै 'रैदासा॥
 
 
इस भजन में भी आत्मा परमात्मा एकत्व के साथ समर्पण और भक्ति का भी संदेश देते हैं रविदास ने नाम भक्ति की लेकिन समाज में व्याप्त कर्मकांड और पाखंड का भी खंडन किया वे कहते हैं
 
 
भेष लियो पै भेद न जान्यो।
अमृत लेई विषै सो सान्यो।। टेक।।
काम क्रोध में जनम गँवायो, साधु सँगति मिलि राम न गायो।।१।।
तिलक दियो पै तपनि न जाई, माला पहिरे घनेरी लाई।।२।।
कह रैदास परम जो पाऊँ, देव निरंजन सत कर ध्याऊँ।।३।।
 
कबीर विद्रोही है ,उग्र आग्रही हैं प्रखर है इसलिए मूर्ति भंजक शैली में जाति श्रेष्ठता का खंडन करते है ।
 
 
जो तूं ब्रह्मण ब्राह्मणी का जाया
आन बाट काहे नहीं आया
काहे को कीजै पांडे छूत विचार।
छूत ही ते उपजा सब संसार ।।
हमरे कैसे लोहू तुम्हारे कैसे दूध।
तुम कैसे बाह्मन पांडे, हम कैसे सूद
जो तू तुरक तुरकनी जाया, अन्दर खतना क्यूं न कराया।
रविदास जाति को विनम्रता से मान लेते हुए कहते हैं
जाति भी ओछी, करम भी ओछा,
ओछा कसब हमारा।
नीचे से प्रभु ऊँच कियो है,
कहि 'रैदास चमारा॥
अद्वैत वेदांत के समन्वय के अतिरिक्त संत रविदास की सामाजिक संदेश का महत्व बहुत अधिक है । वह जन्म आधारित जाति भेद को नकारते हैं । जब ईश्वर एक है तो कोई ऊंच-नीच कैसे हो सकता है । जाति जन्म आधारित कैसे हो सकती है । उनके सूत्रों ने वंचित समाज और दबे कुचले लोगों को बहुत ताकत दी । वह कहते हैं ।
 
जाति एक जामे एकहि चिन्हा

देह अवयव कोई नहीँ भिन्ना।
कर्म प्रधान ऋषि-मुनि गावेँ
यथा कर्म फल तैसहि पावेँ।।
जीव के जाति वरन कुल नाही
जाति भेद है जग मुरखाई।
नीति-स्मृति-शास्त्र सब गावेँ
 
जाति भेद शठ मूढ़ बतावेँ।।
अर्थ-  जीवात्मा की कोई जाति नहीँ होती, जो कुछ भेद है सो कर्म के आधार पर है और ऐसा सभी शास्त्र और ऋषिओँ का मत है।
 
रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच
नर कूं नीच करि डारी है, ओछे करम की कीच
 
 
अर्थ- इस दोहे में रविदासजी कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति किसी जाति में जन्म के कारण नीचा या छोटा नहीं होता है। किसी व्यक्ति को निम्न उसके कर्म बनाते हैं। इसलिए हमें सदैव अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए। हमारे कर्म सदैव ऊंचें होने चाहिए।
उन्होंने जन्म से उच्च जाति का खंडन करके कर्म पर बल दिया
रविदास जाति मत पूछइ का जात का पात।
ब्राह्मण खत्री बैस सूद सभन की एक जात।।"

"जात पात के फेर महीं उरझि रहइ सब लोग।
मानुषता कूं खात है रविदास जात का रोग।।"
बाह्मन ,खतरी,बेस ,सुद रविदास जनम ते नाही ।।
जो चाही सुबरन काऊ ,पांवई करमन माही ।।
 
भारतीय इतिहास में तीन ऐसी घटनाएं हैं जिसमें इस देश के लाखों लोगों को मुसलमान होने से बचाया । आज यदि इस देश में हिंदू बहुसंख्यक है तो इन तीन घटनाओं और इन तीन महापुरुषों का बहुत बड़ा ऋण देश पर है । पहली जब कश्मीरी ब्राह्मणों ने गुरु तेग बहादुर से गुहार लगाई कि मुस्लिम बादशाह हमारा धर्म बदलना चाहता है । हमें बचाइए तब गुरु तेग बहादुर ने कहा था कि बादशाह से कह दो कि अगर गुरु तेग बहादुर जी अपना धर्म बदल देंगे तो हम सब मुसलमान हो जाएंगे । वे अपने शिष्यों सहित दिल्ली गए और तमाम यातनाओं के बाद भी धर्म नहीं बदला ।
 
 
उनकी शहादत ने मुस्लिम धर्म परिवर्तन के खिलाफ पूरे देश को खड़ा होने की शक्ति दी ।दूसरा जब 1935 में काला राम मंदिर प्रवेश आंदोलन में घायल होने के बाद बाबा साहब अंबेडकर ने कहा कि मैं हिंदू पैदा हुआ हूं लेकिन हिंदू मरूंगा नहीं । लेकिन जब नवाब ने उन्हें मुसलमान होने के लिए करोड़ों रुपयों का ऑफर किया। जान से मारने की धमकी भी दी। लेकिन डॉक्टर अंबेडकर ने इस्लाम न अपनाकर बौद्ध धर्म अपनाया । इस घटना का भारत में हिंदू बहुसंख्यक होने का बहुत बड़ा योगदान है ।
 संत रविदास को जब मुसलमान बनाने की भी बहुत कोशिश हुई उन्हें दबाव दिए गए सधना पीर को भेजा कि रविदास के लाखों अनुयाई हैं । यदि वो मुसलमान हो जाएं तो देश में बहुत बड़ी आबादी मुसलमान हो जाएगी लेकिन सधना पीर स्वयं उनके प्रभाव में हिंदू बन गए। उनके शब्दों में दबे ,कुचले दलितों के लिए प्राण ऊर्जा थी । वे कहते हैं
वेद वाक्य उत्तम धरम, निर्मल वाका ग्यान

यह सच्चा मत छोड़कर, मैँ क्योँ पढूँ कुरान
स्त्रुति-सास्त्र-स्मृति गाई, प्राण जाय पर धरम न जाई।।
आगे कहते हैँ कि मुझे कुरानी बहिश्त की हूरे नहीँ चाहिए क्योँकि ये व्यर्थ
बकवाद है।
कुरान बहिश्त न चाहिए मुझको हूर हजार|
वेद धरम त्यागूँ नहीँ जो गल चलै कटार||
वेद धरम है पूरन धरमा|
करि कल्याण मिटावे भरमा||
सत्य सनातन वेद हैँ, ज्ञान धर्म मर्याद|
जो ना जाने वेद को वृथा करे बकवाद||
 
सिकंदर लोदी ने उन्हें कठोर दंड देने की धमकी दी लेकिन वे बादशाह ए वक्त से भी नहीं डरे । उन्होंने असीम साहस से शाह को जवाब भिजवाया की
 
मैँ नहीँ दब्बू बाल गंवारा

गंग त्याग गहूँ ताल किनारा
प्राण तजूँ पर धर्म न देऊँ
तुमसे शाह सत्य कह देऊँ
चोटी शिखा कबहुँ तहिँ त्यागूँ
वस्त्र समेत देह भल त्यागूँ
कंठ कृपाण का करौ प्रहारा
चाहे डुबाओ सिँधु मंझारा
 
 
इन सभी कारणों से उनके तपस्या और ज्ञान में अनेक श्रेष्ठ लोग उनके शिष्य बने । जो उस छुआछूत के दौर में संभव नहीं था जिससे प्रमुख नाम काशी नरेश, झाली रानी मीराबाई आदि कई नाम है। निश्चित ही संत रविदास का हिन्दू धर्म की एकता में स्मर्णीय ओर स्तुत्य योगदान है ।जिसे संत रविदास के अनुयायीयों को ओर देश को भी याद रखना चाहिए ।
 
प्रो.चिन्तामणि मालवीय पूर्व सांसद एवं मध्यप्रदेश भाजपा प्रवक्ता
9425091553
ई-4 विक्रम यूनिवर्सिटी केम्पस उज्जैन मध्यप्रदेश 456001